Fatigue In Virtual Meetings : कोरोना के दौर में ऑफिस जाना बंद हुआ तो वर्चुअल मीटिंग्स (Virtual Meetings) का चलन बढ़ गया. शुरुआत में इससे लोगों में खासी खुशी नजर आई थी क्योंकि एक तो आप वायरस के खतरे के बीच बाहर निकलने से बच गए, दूसरा आपकी जॉब भी जारी है लेकिन लंबे समय तक चले आ रहे ऑनलाइन काम और वर्चुअल मीटिंग से लोग थकान महसूस करने लगे हैं. दैनिक जागरण में छपी ख़बर के मुताबिक एक रिसर्च में पाया गया है कि वर्चुअल बैठकों में कैमरा ऑन रहने से ‘जूम फटिग (Zoom Fatigue)’ बढ़ती है, मतलब व्यक्ति थका हुआ और कम एनर्जेटिक फील करता है और अगर उन वर्चुअल मीटिंग्स के दौरान कैमरा बंद रखा जाए, तो थकाम कम महसूस होती है. ख़बर के मुताबिक यह निष्कर्ष जर्नल ऑफ अप्लाइड साइकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.
सेल्फ प्रजेंटेशन अतिरिक्त दबाव
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के मैनेजमेंट कॉलेज (University of Arizona’s College of Management) की प्रोफेसर और रिसर्चर एलीसन ग्रेबियल (Allison Gabriel) ने कहा कि ‘जूम फटिग’ के लिए आंशिक तौर पर कैमरे का चालू होना भी अहम कारक है. इससे कुछ कर्मचारियों में थकान की गंभीर समस्या हुई है.
उन्होंने कहा, अक्सर ऐसा माना जाता है कि यदि वर्चुअल बैठकों के दौरान आप कैमरा ऑन रखते हैं तो, आप एक्टिविटी से जुड़े होते हैं लेकिन कैमरा ऑन होने से खुद की सेल्फ प्रजेंटेशन का अतिरिक्त दबाव रहता है. जैसे खुद एक प्रोफेशनल की तरह दिखें, बैकग्राउंड भी वैसा ही हो, बच्चों को कैमरे से दूर रखना आदि.
रिसर्च में क्या निकला
चार सप्ताह में 103 लोगों पर किए अध्ययन में 1400 से ज्यादा ऑब्जर्वेशन (अवलोकन) किया गया. इस आधार पर एलीसन ग्रेबियल ने बताया, ‘हमने पाया कि वर्चुअल बैठकों के दौरान कैमरा चालू रखने से ज्यादा थकान होती है क्योंकि जब लोगों से वर्चुअल बैठकों के दौरान कैमरा चालू रखने को कहा गया, तो ऐसे लोगों ने कैमरा बंद रखने वालों से अधिक थकान होने की शिकायत की.
इस थकान के कारण मीटिंग में बोलना और सहभागिता (Participation) का लेवल कम हो जाता है. मतलब यह है कि जिन लोगों ने कैमरे चालू रखे, वे कैमरा बंद रखने वालों की तुलना में कम सक्षमता (competence) से बैठकों में शामिल रहे.
क्या होती है टेंशन?
स्टडी के मुताबिक वर्चुअल मीटिंग में थकान का यह असर महिलाओं और नए कर्मियों पर सेल्फ प्रजेंटेशन के दवाब के कारण अधिक पाया गया. इसका विश्लेषण करते हुए एलीसन ग्रेबियल कहती हैं, ‘महिलाएं परफेक्ट दिखने तथा बच्चों के कारण किसी अवरोध को लेकर ज्याद सतर्क होती हैं. जबकि नए कर्मी खुद को सक्रिय और उत्पादक यानि एक्टिव और प्रोडक्टिव दिखाने के चक्कर में तनाव में रहते हैं.
क्या किया जा सकता है?
ग्रेबियल आगे कहती हैं कि इसलिए जूम बैठकों में कर्मचारियों से कैमरा चालू रखने को कहा जाना श्रेष्ठ विकल्प नहीं हो सकता है. ऐसे में कर्मचारियों को इसकी छूट दी जानी चाहिए कि वे अपनी इच्छा से वर्चुअल बैठकों के दौरान कैमरा चालू रखें या बंद. साथी ही यह भी नहीं मान लिया जाना चाहिए कि कैमरा बंद रखने का मतलब है कि कर्मचारी की सहभागिता या उत्पादकता कम हो जाएगी.