हाईकोर्ट ने कहा, कि जहां ये आरोप लगें कि चुनाव के बाद राज्य के लोगों की जिंदगी खतरे में हैं, वहां राज्य को अपनी पसंद के अनुसार आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह कानून एवं व्यवस्था बनाए रखे और राज्य के निवासियों में विश्वास पैदा करे। पांच सदस्यीय पीठ ने उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिनमें आरोप लगाया गया है कि सैकड़ों लोग हिंसा के कारण विस्थापित हो गए हैं और वे अब संभावित प्रतिक्रिया के डर से अपने घरों को लौटने में असमर्थ हैं। यह भी कहा है कि हालांकि कार्रवाई राज्य द्वारा की जानी चाहिए थी, लेकिन मामला कोर्ट में लंबित होने के बावजूद जाहिर तौर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को याद दिलाया कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना और लोगों में विश्वास पैदा करना उनका कर्तव्य है। पीठ में न्यायमूर्ति आई. पी. मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार भी शामिल रहे। कोर्ट ने राज्य से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की कोई बाधा न हो। आदेश में कहा गया है, इस तरह की रुकावट को गंभीरता से लिया जाएगा, जिसके लिए अन्य चीजों के अलावा अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई हो सकती है।
उच्च अदालत ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को उन विस्थापित व्यक्तियों की शिकायतों पर गौर करने के निर्देश भी दिए, जिन्हें उनके घर लौटने से रोका जा रहा है। अदालत ने उनके पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाने को भी कहा। अदालत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को एक समिति गठित करने का आदेश दिया, जो पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों द्वारा दायर शिकायतों की जांच करेगी। इससे पहले, हाईकोर्ट ने एंटली निर्वाचन क्षेत्र के विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास के समन्वय के लिए एनएचआरसी, एसएचआरसी और एसएलएसए द्वारा नामित सदस्यों से बनी एक समिति का गठन किया था।
समिति सभी मामलों की जांच करेगी और हो सकता है कि वह प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करके वर्तमान स्थिति के बारे में न्यायालय को एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करे। समिति यह भी देखेगी कि क्या लोगों के अंदर यह विश्वास सुनिश्चित हो चुका है कि वे अपने घरों में शांति से रह सकते हैं और क्या वह अपनी आजीविका कमाने के लिए अपना व्यवसाय भी आसानी से कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा, अपराध के लिए प्रथम ²ष्टया जिम्मेदार व्यक्तियों और इस मुद्दे पर सोची समझी चुप्पी बनाए रखने वाले अधिकारियों को इंगित किया जाए।
30 जून को मामले की फिर सुनवाई होगी
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने हाल ही में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सख्त लहजे में एक पत्र लिखा था, जिसमें चुनाव के बाद प्रतिशोधात्मक रक्तपात, मानवाधिकारों के उल्लंघन, महिलाओं की गरिमा पर अपमानजनक हमले और संपत्ति के विनाश पर उनकी चुप्पी की आलोचना की गई थी। इस पत्र को लेकर राज्य सरकार की ओर से अत्यधिक आलोचना की गई है।